*ग़ज़ल* -1
कैसे अजीब रंग दिखाएगी जिंदगी अब और कितने रोज रुलाएगी जिंदगी आता है कौन काम मुसिबत के वक्त मे अपना है कौन हमको बताएगी जिंदगी उस रास्ते पे कोई चले या नही चले जो रास्ता है नेक सुझाएगी जिंदगी दामन मे जिंदगी के कमी कोई भी नही खुशियों के फुल भी तो खिलाएगी जिंदगी हिम्मत ना हारो सच कि डगर पर चले चलो कश्ती तुम्हारी पार लगाएगी जिंदगी !! संजय कुमार गिरि
कैसे अजीब रंग दिखाएगी जिंदगी अब और कितने रोज रुलाएगी जिंदगी आता है कौन काम मुसिबत के वक्त मे अपना है कौन हमको बताएगी जिंदगी उस रास्ते पे कोई चले या नही चले जो रास्ता है नेक सुझाएगी जिंदगी दामन मे जिंदगी के कमी कोई भी नही खुशियों के फुल भी तो खिलाएगी जिंदगी हिम्मत ना हारो सच कि डगर पर चले चलो कश्ती तुम्हारी पार लगाएगी जिंदगी !! संजय कुमार गिरि
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