Friday, 8 September 2017

            




*सरस्वती वंदना* 

गाया सदा ही' मैंने ,माँ नाम बस तुम्हारा 
आशीष मिल रहा है मुझको सदा तुम्हारा 
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ये जिंदगी समर्पित करता हूँ आपको मैं
देती हो आसरा तुम जब भी तुम्हे पुकारा
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कितनी कठिन हो' राहें चलता रहूँ मैं' पथ पे
आया शरण में तेरी , दे दो मुझे सहारा
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मिलजुल रहें सदा ही ,माँ शारदे के' दर पे
ये जिंदगी नहीं फिर ,मिलती कभी दुबारा
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हर शब्द सार्थक हो ,माँ से करूँ ये' विनती
ये लेखनी लिखे जो ,बन जाए' ध्रुव. तारा
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करता यही है' विनती संजय माँ' शारदे से
ले लो शरण में अपनी बन जाऊं मैं दुलारा
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संजय कुमार गिरि




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