Monday, 26 February 2018

*ग़ज़ल*
1 ग़ज़ब की ये बीमारी हो गई है।
मुहब्बत की ख़ुमारी हो गई है।।
जरा तुम पास आ जाओ हमारे।
अजब हालत हमारी हो गई है।।
न जीते हैं, न मरते हैं वफ़ा में।
ये कैसी बेकरारी हो गई है।।
तुम्हें देखा नहीं है जबसे हमनें।
हमारी साँस भारी हो गई है।।
मुहब्बत हो गई संजय तुम्हें भी।
ये सबको जानकारी हो गई है।।
संजय कुमार गिरि

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