फगुवा की रीत भली ,हियरा में प्रीत पली,
होरी में गोपाल सँग, मेल रहीं गोपियाँ।
गोरे गोरे गालन पे, मलते गुलाल श्याम,
नोक-झोंक नेह भरी, झेल रहीं गोपियाँ।।
हाथ पिचकारी भरे, गोपियों पे भारी पड़े,
करें बरजोरी श्याम ,ठेल रही गोपियाँ ।।
मनवा उदार लिये ,होरी की फुहार लिए ।
धाय मुसकाय होरी,खेल रही गोपियाँ।।
संजय कुमार गिरि
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