मुक्तक
1
तेज़ गर आंधी चली तो ,रुख हवा का मोड़ दूं
घूर कर देखा अगर तो , आँख उसकी फोड़ दूं
घूर कर देखा अगर तो , आँख उसकी फोड़ दूं
गर तिरंगे का किया अपमान किसी शैतान ने
हे कसम मुझको वतन की हाथ उसके तोड़ दूं
संजय कुमार गिरि
हे कसम मुझको वतन की हाथ उसके तोड़ दूं
संजय कुमार गिरि
2
हर वर्दी की अपनी अलग शान होती है,
अपने वतन के वीरों की पहचान होती है !
तिरंगा सदा ऊँचा दिखे इस देश का मेरे ,
इसी तिरेंगे में तो देश की जान होती है !!
संजय कुमार गिरि
अपने वतन के वीरों की पहचान होती है !
तिरंगा सदा ऊँचा दिखे इस देश का मेरे ,
इसी तिरेंगे में तो देश की जान होती है !!
संजय कुमार गिरि
3.
शहीदों की सहादत पर हमें अभिमान होता है
हमारी जान पर उनका सदा अहसान होता है
दुआ मांगी सदा हमने हमारे देश की खातिर
हमारे देश का बच्चा यहाँ कुर्बान होता है
संजय कुमार गिरि
हमारी जान पर उनका सदा अहसान होता है
दुआ मांगी सदा हमने हमारे देश की खातिर
हमारे देश का बच्चा यहाँ कुर्बान होता है
संजय कुमार गिरि
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