Sunday, 25 March 2018

*ग़ज़ल *
आज जब याद ये तेरी आई
जिस्म में जैसे' जान सी आई
रात भर चैन से नहीं सोया
तू जो बन दिल में खल्बली आई -
मैं तुझे ढूँढता रहा हर पल
बाद मुद्दत के' वो घड़ी आई
ज़िन्दगी भर तुझे नहीं भूला
आज तू ख़्वाब में चली आई
अब किसे हम कहें यहाँ अपना
बीच दीवार मजहबी आई
दूसरों से करूँ गिला कैसा
आज अपनों में ही कमी आई
संजय कुमार गिरि

No comments:

Post a Comment

विकट परथति में डॉक्टरों पर जानलेवा हमले क्यों   लेखक संजय कुमार गिरि देश में इस विकट समस्या से आज हर नागरिक जूझ रहा है और न चाहते हुए भ...