Sunday, 8 April 2018

**ग़ज़ल**
दग़ा दोस्ती में न तुम यार करना।
कभी पीठ पीछे न तुम वार करना।।
करेंगे न हद पार हम दोस्ती की।
कि तुम भी कभी ये न हद पार करना।।
अगर हम करें ज़िद कभी जीतने की।
तो हँस कर ही तुम हार स्वीकार करना।।
कभी दूर से चल के आए कोई तो।
सदा हँस के ही उसका सत्कार करना।।
मिला है तुम्हें चार ही दिन का जीवन।
इसे यूँ ही बस तुम न बेकार करना।।
वतन पर कभी आँच आए अगर तो।
क़लम की ज़रा तेज रफ्तार करना।।
हमेशा ही 'संजय' ने बाँटी मुहब्बत।
उसे भी अगर हो सके प्यार करना।।
संजय कुमार गिरि

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