Saturday, 12 May 2018

शीर्षक " माँ " पर कुछ कवि एवं साहित्यकारों के रचनात्मक विचार 
माँ के क़दमों में है जन्नत ये बताने वाले
मुझको लगता है कि जन्नत से वो आगे न गए
दीक्षित दनकौरी  
2-
जीवन के हर मोड़ पर, छले गए हर बार। 
मां की ममता साथ थी,हार गया संसार।।
सरिता गुप्ता
दिल्ली
3-
माँ जीवन का सार है, माँ है तो संसार।
माँ बिन जीवन लाल का,समझो है बेकार।।
लाल बिहारी लाल
4--
रहे खुद भूखी फिर भी , दे पेट भर खाना |
भाव है उसका ऐसा ,खिला खुश हो जाना ||
संजय वर्मा "दृष्टि" मनावर 
5-
हर धर्म की माँ ओ के ,ममता के एक रूप |
आँचल से ढांक देती ,जब सर पर हो धूप|| 
संजय वर्मा "दृष्टि" मनावर 
6--
मैं घंटे बतियाता हूं माँ की कब्र से,
एै "रंग"--एैसा लगता है की जैसे,
माँ की कब्र से भी
अपने बेटे को दुआ आती है।
रंगनाथ द्विवेदी।
7--
माँ के कदमो में रहूँ, टूटे सभी गुरूर !
माँ ममता की छाव से , कभी न रखना दूर !!
कृष्णा नन्द तिवारी 
8--
माँ से ही संसार है,माँ ही ममता रूप।
देती सबको छाँव है,खुद सहती है धूप।।
मनोज कामदेव
9--
जाकर छत पर देखता ,चंदा तारे रोज ।
माँ उसको मिलती नहीं ,बालक करता खोज ।।
संजय कुमार गिरि
10--
मांग लूं यह मन्नत ,फिर यही जहाँ मिले 
फिर यही गोद मिले , फिर यही माँ मिले 
माधवी राठी 
11--
सुख-दुख दोनों में रहे, कोमल और उदार।
कैसी भी सन्तान हो, माँ देती है प्यार।।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक
12-
'मां ही पहली गुरू है, मां है तीरथ धाम,
कौशल्या- आशीष से, राम हो गये राम।
राधेश्याम बन्धु
प्रस्तुति :***शायर एक शायरी अनेक ***
संकलन कर्ता   :-संजय कुमार गिरि , 

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