आनाथ *
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एक बार मुझे कुछ बदमाशों ने बीच सड़क पर चाकू मार घायल कर दिया ,मै अचेत अवस्था में पड़ा रहा ,लोग आते -जाते रहे पर किसी को भी इतना वक्त नहीं की वो मुझे देख सके .मेरी मदत कर मुझे हॉस्पिटल पंहुचा सके !, इतने में ही मैंने देखा कि एक गरीब व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग ५५-६० वर्ष के आस -पास रही होगी मुझे उठा के अपने कंधो पे ड़ाल हॉस्पिटल कि और चल पड़ा !
.हॉस्पिटल पहुँच कर उसने मुझे आपात -कालीन वार्ड में एडमिट करा दिया और मेरी देखभाल कि खातिर रातभर रुका .मेरी देखभाल करने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी .सुबह होते ही वह मेरे लिए चाय और बिस्कुट ले आया और मेरी और बढ़ाते हुए बोला लो बेटा नास्ता कर लो .उसके मूंह से अपने को बेटा शब्द सुनते ही मेरी आँखों मै आँसू बह निकले .आज तक मुझ अनाथ को किसी ने भी बेटा कह कर नहीं बुलाया था ,मेरे बहते हुए आंसूओं को देख कर वह व्यक्ति बोला,बेटा रोते कियों हो किया कहीं दर्द ज्यादा हो रहा है .रुको !मै डॉक्टर को बुला के लाता हूँ .मैंने उन्हें रोकते हुए कहा ,नहीं बाबा ये दर्द मेरे ज़ख्मों का नहीं बल्कि ज़माने द्वारा दिए तानो व् गलियों का है .आज तक किसी ने भी मुझे बेटा कह कर नहीं पुकारा , सभी ने मुझे कभी छोटू ,छोकरे .लोंडे या लड़के के नाम से पुकारा था , आप ही वो पहले शक्स हें जिसने मुझे बेटा कहा हें .मेरी बात सुनकर वह बूढ़ा व्यक्ति भी रो पढ़ा और मेरे गले लग कर रोने लगा और बोला बेटा मैं भी तुम्हारी ही तरह आनाथ हूँ मेरा भी इस दुनिया में कोई नहीं है ,
हम दोनों ने अब एक दुसरे को सम्भाला और हॉस्पिटल से छुट्टी ले कर अपने गन्तव्ये कि और चल पड़े ,एक दुसरे कि बांह पकडे ,अब हम आनाथ नहीं थे ,हमारे बीच एक नया रिश्ता बन चुका था पिता और पुत्र का .
*संजय कुमार गिरि
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एक बार मुझे कुछ बदमाशों ने बीच सड़क पर चाकू मार घायल कर दिया ,मै अचेत अवस्था में पड़ा रहा ,लोग आते -जाते रहे पर किसी को भी इतना वक्त नहीं की वो मुझे देख सके .मेरी मदत कर मुझे हॉस्पिटल पंहुचा सके !, इतने में ही मैंने देखा कि एक गरीब व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग ५५-६० वर्ष के आस -पास रही होगी मुझे उठा के अपने कंधो पे ड़ाल हॉस्पिटल कि और चल पड़ा !
.हॉस्पिटल पहुँच कर उसने मुझे आपात -कालीन वार्ड में एडमिट करा दिया और मेरी देखभाल कि खातिर रातभर रुका .मेरी देखभाल करने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी .सुबह होते ही वह मेरे लिए चाय और बिस्कुट ले आया और मेरी और बढ़ाते हुए बोला लो बेटा नास्ता कर लो .उसके मूंह से अपने को बेटा शब्द सुनते ही मेरी आँखों मै आँसू बह निकले .आज तक मुझ अनाथ को किसी ने भी बेटा कह कर नहीं बुलाया था ,मेरे बहते हुए आंसूओं को देख कर वह व्यक्ति बोला,बेटा रोते कियों हो किया कहीं दर्द ज्यादा हो रहा है .रुको !मै डॉक्टर को बुला के लाता हूँ .मैंने उन्हें रोकते हुए कहा ,नहीं बाबा ये दर्द मेरे ज़ख्मों का नहीं बल्कि ज़माने द्वारा दिए तानो व् गलियों का है .आज तक किसी ने भी मुझे बेटा कह कर नहीं पुकारा , सभी ने मुझे कभी छोटू ,छोकरे .लोंडे या लड़के के नाम से पुकारा था , आप ही वो पहले शक्स हें जिसने मुझे बेटा कहा हें .मेरी बात सुनकर वह बूढ़ा व्यक्ति भी रो पढ़ा और मेरे गले लग कर रोने लगा और बोला बेटा मैं भी तुम्हारी ही तरह आनाथ हूँ मेरा भी इस दुनिया में कोई नहीं है ,
हम दोनों ने अब एक दुसरे को सम्भाला और हॉस्पिटल से छुट्टी ले कर अपने गन्तव्ये कि और चल पड़े ,एक दुसरे कि बांह पकडे ,अब हम आनाथ नहीं थे ,हमारे बीच एक नया रिश्ता बन चुका था पिता और पुत्र का .
*संजय कुमार गिरि
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