लघु कथा -3
* अनाथ *
मैं किसी काम से बाजार जा रहा था के रास्ते में मैंने देखा कुछ युवक एक युवती को छेड़ रहे थे यह मुझसे देखा न गया और मैं उस युवती की मद्दत करने आगे बढ़ा और उन बदमाशों को डांटने लगा ,उनके साथ बहस ज्यादा बढ़ गई और उन बदमाशो में से एक ने अचानक ही मुझे चाकू मार दिया और सभी वहां से भाग लिए । मैं अचेआवस्था में पड़ा रहा और लोग आ -जा रहे थे पर किसी को भी इतना वक्त नहीं की मुझे देख सके और मुझे किसी नजदीकी अस्पताल पहुँचा सके ।इतने में ही मैंने देखा कि एक गरीब व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग 55 - 60 के आस -पास रही होगी ,मुझे अपने कंधो पे ड़ाल अस्पताल कि ऒर चल पड़ा ।
.अस्पताल पहुँच कर उसने मुझे आपात -कालीन वार्ड में एडमिट करा दिया और मेरी देखभाल कि खातिर रात भर वहीं रुका ।मेरी देखभाल करने में उस ने कोई कसर नहीं छोड़ी .सुबह होते ही वह मेरे लिए चाय और बिस्कुट ले आया और मेरी और बढ़ाते हुए उसने कहा लो बेटा नास्ता कर लो ।उसके मुँह से अपने को बेटा शब्द सुनते ही मेरी आँखों से आँसू बह निकले ,आज तक मुझ अनाथ को किसी ने भी बेटा कह कर नहीं बुलाया था ,मेरे बहते हुए आँसूओं को देख कर वह बूढ़ा व्यक्ति बोला,बेटा रोते क्यों हो क्या दर्द ज्यादा हो रहा है. रुको मै डॉक्टर को बुला लाता हूँ ।मैंने उन्हें रोकते हुए कहा नहीं बाबा ये दर्द मेरे ज़ख्मों का नहीं बल्कि ज़माने द्वारा दिए तानो व् गलियों का है ।.आज तक किसी ने भी मुझे बेटा कह कर नहीं पुकारा ,था सभी ने मुझे कभी छोटू ,छोकरे तो कभी लोंडे या हरामी के नाम से पुकारा था , आप ही वो पहले शक्स हैं जिसने मुझे बेटा कहा है ।.मेरी बात सुनकर वह बूढ़ा व्यक्ति भी रो पढ़ा और मुझे अपने गले लगा लिया और बोला बेटा मैं भी तुम्हारी ही तरह अनाथ हूँ मेरा भी इस दुनिया में कोई नहीं है ।
हम दोनों ने अब एक दुसरे को सम्भाला और हॉस्पिटल से छुट्टी ले कर अपने गन्तव्य कि ओर चल पड़े ,एक दुसरे कि बांह पकडे ,अब हम अनाथ नहीं थे ।
*संजय कुमार गिरि
9871021856
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