Friday, 3 May 2019

कभी मुझसे न अपने राज़ यारा तू छिपाया कर
जो माना मीत अपना तो मुझे सब कुछ बताया कर
यकीं है गर तुझे मुझ पर नहीं दूँगा तुझे धोखा
ज़माने की कही बातों में ऐसे तो न आया कर
तुझे हक़ है दिया मैंने किया कर हर शिकायत तू
करूँ गर कोई गलती मैं मुझे खुल के बताया कर
अगर है दोस्ती पक्की तो झगड़ा भी जरूरी है
कभी मैं मान जाऊंगा कभी तुझको मना लूंगा
तेरे मन से जुड़ा हूँ मैं मेरे मन से जुड़ा है तू
अगर माने हथेली पर न सरसों को उगाया कर
सहर या शाम बातें मैं करूँ घर में सदा तेरी
कभी मैं रूठ जाऊँ तो मुझे तू भी मनाया कर
खफ़ा होगा जो संजय से कहाँ तू चैन पायेगा
अँधेरा कर दूँ मैं गर एक दीपक तू जलाया कर
संजय कुमार गिरि

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