लघु कथा -1
अपशगुन
आज सुबह से ही मेरी बाईं आँख लगातार फड़फड़ा रही थी। मेरे मन में किसी अपशगुन के घटित होने की आशंका बनी हुई थी। चुपचाप खाना खाकर निकाल लिया था । आज पत्नी से ज्यादा नमक की शिकायत भी नहीं की थी।
ऑफ़िस पहुँच कर मैं अपने कम्यूटर को ऑन किया। काम बहुत था किन्तु बार-बार मेरे मन में अपशगुन की आशंका घूमे जा रही थी ।
“गुड मॉर्निंग सर।“ पेंट्री बॉय ने चाय टेबल पर रखते हुए कहा। मैं भी जैसे-तैसे अपना मन मारकर अपने काम में लग गया। अचानक फोन की घंटी बजी। फोन उठाने की हड़बड़ी में चाय न जाने कैसे टेबल पर गिर गई ।
फोन परसंदीप ने भी एक दु:खद सूचना दी कि मेरे ससुर जी की अचानक से तबियत ख़राब हो गई है और वे हॉस्पिटल में एडमिट हैं । जिसका डर था वही हुआ। हार्ट के मरीज थे वे और डॉ ने तुरंत ऑपरेशन के लिए बोला था । यह खबर सुनकर मेरे हाथ पैर काँप गए, मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करूँ ? मैं अभी कुछ सोच ही रहा था कि तभी ऑफिस बॉय मेरे नज़दीक आया और बोला, “बॉस बुला रहें हैं।“
ऑफ़िस पहुँच कर मैं अपने कम्यूटर को ऑन किया। काम बहुत था किन्तु बार-बार मेरे मन में अपशगुन की आशंका घूमे जा रही थी ।
“गुड मॉर्निंग सर।“ पेंट्री बॉय ने चाय टेबल पर रखते हुए कहा। मैं भी जैसे-तैसे अपना मन मारकर अपने काम में लग गया। अचानक फोन की घंटी बजी। फोन उठाने की हड़बड़ी में चाय न जाने कैसे टेबल पर गिर गई ।
फोन परसंदीप ने भी एक दु:खद सूचना दी कि मेरे ससुर जी की अचानक से तबियत ख़राब हो गई है और वे हॉस्पिटल में एडमिट हैं । जिसका डर था वही हुआ। हार्ट के मरीज थे वे और डॉ ने तुरंत ऑपरेशन के लिए बोला था । यह खबर सुनकर मेरे हाथ पैर काँप गए, मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करूँ ? मैं अभी कुछ सोच ही रहा था कि तभी ऑफिस बॉय मेरे नज़दीक आया और बोला, “बॉस बुला रहें हैं।“
मैं अपने को किसी तरह संभालता इस नई मुसीबत के लिए बॉस के केबिन में गया । जैसे ही बॉस ने मुझे देखा तो तुरंत मेरा स्वागत करने स्वयं मेरे नजदीक आ गए। मेरे कंधे पर शाबाशी देते हुए मेरी पीठ थपथपाई और बोले,
“तुमने बहुत अच्छा कार्य किया है। तुम्हारे कार्य से हम बेहद खुश हैं और अब तुम्हारा प्रमोशन कर रहे हैं ।“
वहीं पास में मेरे मैनेजर भी खड़े थे और और उन्होंने मुझे बधाई देते हुए कहा, “संजय! हमें तुम पर बहुत नाज़ है, अगले माह से तुम्हारी सैलरी अब बढ़ कर आएगी !”
जब मैं बोस के केविन से बाहर निकला तो मेरे अंदर का अपशगुन का डर गायब था और चेहरे पर मुस्कान थी।
मैंने बैंक से पैसे निकाले और अपशकुन को शकुन में बदलने के लिए अस्पताल की ओर चल दिया ।
“तुमने बहुत अच्छा कार्य किया है। तुम्हारे कार्य से हम बेहद खुश हैं और अब तुम्हारा प्रमोशन कर रहे हैं ।“
वहीं पास में मेरे मैनेजर भी खड़े थे और और उन्होंने मुझे बधाई देते हुए कहा, “संजय! हमें तुम पर बहुत नाज़ है, अगले माह से तुम्हारी सैलरी अब बढ़ कर आएगी !”
जब मैं बोस के केविन से बाहर निकला तो मेरे अंदर का अपशगुन का डर गायब था और चेहरे पर मुस्कान थी।
मैंने बैंक से पैसे निकाले और अपशकुन को शकुन में बदलने के लिए अस्पताल की ओर चल दिया ।
संजय कुमार गिरि
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