मुक्तक
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तन की सुन्दरत भला ये कब तलक रह पाएगी ,
तोड़ के पिंजरा ये चिडया आकाश में उड़ जायेगी !
कर दो अर्पित सब समर्पित तुम अपने आराध्य को,
एक दिन दुनिया ये सारी ख़ाक में मिल जायेगी !!
संजय कुमार गिरि
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तन की सुन्दरत भला ये कब तलक रह पाएगी ,
तोड़ के पिंजरा ये चिडया आकाश में उड़ जायेगी !
कर दो अर्पित सब समर्पित तुम अपने आराध्य को,
एक दिन दुनिया ये सारी ख़ाक में मिल जायेगी !!
संजय कुमार गिरि
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