Thursday, 5 October 2017

ग़ज़ल 1 सूरत बदल गई कभी सीरत बदल गई , इंसान की तो सारी हकीकत बदल गई ! पैसे अभी तो आए नहीं पास आपके , ये क्या अभी से आप की नीयत बदल गई !! मंदिर को छौड "मयकदे "जाने लगे हैं लोग , इंसा की अब तो तर्ज -इबादत बदल गई ! खाना नहीं गरीब को भर पेट मिल रहा , कैसे कहूँ गरीब की हालत बदल गई !! नफरत का राज अब तो हर सू दिखाई दे , पहले थी जो दिलों में महब्बत बदल गई ! देता न था जबाब जो मेरे सलाम का , वो हंस के क्या मिला मेरी किस्मत बदल गई !! संजय कुमार गिरि 2 ग़ज़ल कैसे अजीब रंग दिखाएगी जिंदगी। अब और कितने रोज रुलाएगी जिंदगी आता है कौन काम मुसिबत के वक्त मे। अपना है कौन हमको बताएगी जिंदगी !! उस रास्ते पे कोई चले या नही चले जो रास्ता है नेक सुझाएगी जिंदगी ! दामन मे जिंदगी के कमी कोई भी नही खुशियों के फुल भी तो खिलाएगी जिंदगी !! हिम्मत ना हारो सच कि डगर पर चले चलो कसती तुम्हारी पार लगाएगी जिंदगी !! संजय कुमार गिरि 3 ग़ज़ल आग कैसी ये जो लगती जा रही है , भूख अब पैसे की बढती जा रही है ! जिन्दगी से तिलमिलाती जिन्दगी , आबरू गरीब की लुटती जा रही है !! कर दिया है कत्ल रिश्तो का यहाँ ,, नफरतों की आग बढती जा रही है ! ये महब्बत ही न हो ऐ मेरे दिल , एक सूरत दिल में उतरी जा रही है !! दोस्ती किस से करें अब "संजय" हम, दोस्ती भी छल से भरती जा रही है !! संजय कुमार गिरि 4 नहीं आज कोई गिला हम करेंगे तुम्हारे लिए ही दुआ हम करेंगे वफ़ा जिन्दगी से हमें आज भी है न कोई किसी से जफ़ा हम करेंगे बहुत दर्द हमने सहा है जहां में मिले जख्म की अब दवा हम करेंगे दिखावा बहुत लोग करते यहाँ पर सही बात दिल से सदा हम करेंगे जिसे आज देखो वही घात करता मगर मोल विश्वास का हम करेंगे नहीं जान की आज परवाह 'संजय ' वतन पर ये' हँस हँस फ़िदा हम करेंगे संजय कुमार गिरि 5 बिना तेल के दीप जलता नहीं है उजाले बिना काम चलता नहीं है बिना रोजगारी कहाँ घर चलेगा न हो ये अगर पेट पलता नहीं है दिखाते रहे रात दिन झूठे' सपने , कभी बात से हल निकलता नहीं है सुलाता रहा रात भर भूखे' बच्चे , मगर दुख का' सूरज ये' ढलता नहीं है कहे बात संजय सभी के हितों की गलत बात पे वो मचलता नहीं है संजय कुमार गिरि

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