Tuesday, 31 October 2017

मुक्तक लोक मंच द्वारा सम्मानित होने पर गौरवान्वित  हुआ

Monday, 30 October 2017

निर्देश शर्मा

मेरी बनाई पेंटिंग गहमर गाज़ी पुर से प्रकाशित साहित्यिक हिंदी पत्रिका "साहित्य सरौज "के आवरण पृष्ठ पर प्रकाशित हुई ---


नई पुस्तक
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रजनीगंधा (साझा काव्य-संकलन)
संपादक : कालीशंकर सौम्य
उप-संपादक : संजय कुमार गिरि
रचनाकार :
रंजना नौटियाल
मंजुल भटनागर
डॉ. देव नारायण शर्मा
ओम प्रकाश शुक्ल
मृदुला शुक्ला
डॉ. नरेश सागर
पुष्प लता शर्मा
गौतम कुमार सागर
बलराम निगम
डॉ. प्रशांत देव
अमिट अम्बष्ट
मुदित बंसल
पूजा गुप्ता
राज किशोर 'राज'
संजय भास्कर
मंजू वशिष्ठ
राजेश दिवेदी
अमर नाथ गिरि
डॉ. माज़िद मिया
सविता वर्मा ग़ज़ल
कामिनी गोलवलकर
प्रदीप भट्ट
कुमारी अर्चना
संजय कुमार गिरि

Saturday, 28 October 2017

आज शाम सूर्यदेवता को अर्ग्य देते हुए परिवार के सदस्यगण







सूर्यदेवता को  अर्घ्य देते हम पति पत्नी 

Wednesday, 25 October 2017


आग़ाज़ समूह द्वारा सम्मानित होने का परम सौभग्य
23 अक्टूवर 17 

Monday, 23 October 2017

नशा फिर मुहब्बत का' छाने लगा है 
मुझे याद जब से वो ' आने लगा है
*
फ़िदा हो गया दिल तुम्ही पर ये' मेरा
तराने मुहब्बत के' गाने लगा है
*
हुए जबसे चर्चे जमाने में मेरे
किताबों में' भी नाम आने लगा है
*
किया प्यार मैंने तुम्ही से जहाँ में
मिरा दिल मुझे ये बताने लगा है
*
ज़हर आज किसने है' घोला हवा में
मुझे मौत का डर सताने लगा है
*
सुनो बेखबर हो गया जब से संजय
वो ख़ुद से ही नजरें चुराने लगा है
संजय कुमार गिरि
@सर्वाधिक सुरक्षित
 निदा फ़ाजली की याद में शानदार मुशायरा 
संजय कुमार गिरि ,बाहरी दिल्ली ,अखिल भारतीय उर्दू हिंदी एकता अंजुमन द्वारा देश के मशहूर शायर निदा फाज़ली की याद में एक शानदार मुशायरा का आयोजन कल दोपहर मदीना मंजिल वाई ब्लोक के मंगोलपुरी इलाके में स्थित शायर असलम बेताब के संयोजन में किया गया जिसकी अध्यक्षता शायर साज़िद रज़ा खान ने एवं मुख्य अतिथि पूर्वांचल राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष सुरेन्द्र कौशिक रहे !दोपहर २ बजे से लेकर लगभग शाम 7 बजे तक चलने वाले इस शानदार मुशायरे में दिल्ली और दिल्ली के आसपास से शिरकत करने वाले शायरों एवं कवियों ने अपना बेहतरीन और बेहद लाजबाब काव्य पाठ किया जिनमे -आरिफ़ देहलवी ,रामश्याम हसीन ,दुर्गेश अवस्थी ,संजय गिरि ,अरसद कमर ,प्रेम सागर प्रेम ,सिकंदर मिर्ज़ा ,अफजाल देहलवी ,जगदीश मीणा ,राजेश तंवर ,विनोद कुमार ,बशीर चिराग ,शायरा निवेदिता झा और वसुधा कानुप्रिया प्रमुख रूप से रही ,
अखिल भारतीय उर्दू हिंदी एकता अंजुमन द्वारा मुशायरे में अपना लाजबाब एवं खूबसूरत कलाम पेश करने के लिए मंच के गणमान्य अतिथियों द्वारा कवि एवं शायरों को उर्दू हिंदी सेवा सम्मान से भी नवाजा गया !मुशायरे की निज़ामत शायर असलम बेताब ने बेहद लाजबाब और शायराना अंदाज़ में किया !




Thursday, 12 October 2017

26 अक्टूबर से 3 नवम्बर 1998 तक गाँधी स्मृति एवम दर्शन समिति द्वारा आयोजित -- गाँधी कला मेला एवम साहित्योत्सव में सहभागिता -प्रमाण पत्र 

Wednesday, 11 October 2017

दैनिक सांध्य दिन प्रतिदिन (अम्बाला से एक प्रकाशित) समाचार पत्र में आज कुछ दोहे प्रकाशित हुए 
12 अक्तूबर 17



Sunday, 8 October 2017

दैनिक ट्रू_टाइम्स (दिल्ली एवं लखनऊ से एक साथ प्रकाशित) समाचार पत्र में आज एक गीतिका प्रकाशित हुई 
9 अक्तूबर 17

जल्द आ रही है 
रजनीगंधा (24 रचनाकारों का साझा काव्य संकलन)---2017

रचनाकार 
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मंजू वशिष्ठ राज, राजस्थान
मंजुल भटनागर, मुंबई
देव नारायण शर्मा, उत्तर प्रदेश
ओम प्रकाश शुक्ल, दिल्ली
मृदुला शुक्ला, उत्तर प्रदेश
डा नरेश सागर, उत्तर प्रदेश
पुष्प लता, दिल्ली
गौतम कुमार सागर, गुजरात
बलराम निगम, राजस्थान
डा. प्रशांत देव, उत्तर प्रदेश
अमित अम्भ्रष्ट, कोलकाता
मुदित बंसल, उत्तर प्रदेश
पूजा गुप्ता, नेपाल
राजकिशोर मिश्र राज, उत्तर प्रदेश
संजय भास्कर, हरियाणा
रंजना नौटियाल. दिल्ली
राजेश द्विवेदी, उत्तर प्रदेश
अमरनाथ गिरि, दिल्ली
डा मजीद मिया, दार्गिलिंग
सरिता वर्मा ग़ज़ल, उत्तर प्रदेश
कामिनी गोलवलकर, मध्यप्रदेश
प्रदीप भट्ट, दिल्ली
कुमारी अर्चना, बिहार
संजय कुमार गिरि, दिल्ली

संपादक: कालीशंकर 'सौम्य'
उप संपादक: संजय गिरि
प्रस्तुति: शब्दांकुर प्रकाशन





दोहा कलश
(30 दोहकारों के दोहों का संकलन में मेरे भी कुछ दोहे प्रकाशित हुए )




शब्दांकुर प्रकाशन का सहयोगी काव्य संकलन : काव्यमाला में मेरी रचनाएं भी प्रकाशित हुई (2015)

शब्दांकुर प्रकाशन क़े अंतर्गत प्रकाशित पुस्तक  'काव्यशाला' में मेरे द्वारा 24 रचनाकारों का सहयोगी कव्य सकंलन
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Hardcover: 104 pages
Publisher: Shabdankur Prakashan (2014)
Language: Hindi
ISBN: 978-8192948713
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Thursday, 5 October 2017

ग़ज़ल 1 सूरत बदल गई कभी सीरत बदल गई , इंसान की तो सारी हकीकत बदल गई ! पैसे अभी तो आए नहीं पास आपके , ये क्या अभी से आप की नीयत बदल गई !! मंदिर को छौड "मयकदे "जाने लगे हैं लोग , इंसा की अब तो तर्ज -इबादत बदल गई ! खाना नहीं गरीब को भर पेट मिल रहा , कैसे कहूँ गरीब की हालत बदल गई !! नफरत का राज अब तो हर सू दिखाई दे , पहले थी जो दिलों में महब्बत बदल गई ! देता न था जबाब जो मेरे सलाम का , वो हंस के क्या मिला मेरी किस्मत बदल गई !! संजय कुमार गिरि 2 ग़ज़ल कैसे अजीब रंग दिखाएगी जिंदगी। अब और कितने रोज रुलाएगी जिंदगी आता है कौन काम मुसिबत के वक्त मे। अपना है कौन हमको बताएगी जिंदगी !! उस रास्ते पे कोई चले या नही चले जो रास्ता है नेक सुझाएगी जिंदगी ! दामन मे जिंदगी के कमी कोई भी नही खुशियों के फुल भी तो खिलाएगी जिंदगी !! हिम्मत ना हारो सच कि डगर पर चले चलो कसती तुम्हारी पार लगाएगी जिंदगी !! संजय कुमार गिरि 3 ग़ज़ल आग कैसी ये जो लगती जा रही है , भूख अब पैसे की बढती जा रही है ! जिन्दगी से तिलमिलाती जिन्दगी , आबरू गरीब की लुटती जा रही है !! कर दिया है कत्ल रिश्तो का यहाँ ,, नफरतों की आग बढती जा रही है ! ये महब्बत ही न हो ऐ मेरे दिल , एक सूरत दिल में उतरी जा रही है !! दोस्ती किस से करें अब "संजय" हम, दोस्ती भी छल से भरती जा रही है !! संजय कुमार गिरि 4 नहीं आज कोई गिला हम करेंगे तुम्हारे लिए ही दुआ हम करेंगे वफ़ा जिन्दगी से हमें आज भी है न कोई किसी से जफ़ा हम करेंगे बहुत दर्द हमने सहा है जहां में मिले जख्म की अब दवा हम करेंगे दिखावा बहुत लोग करते यहाँ पर सही बात दिल से सदा हम करेंगे जिसे आज देखो वही घात करता मगर मोल विश्वास का हम करेंगे नहीं जान की आज परवाह 'संजय ' वतन पर ये' हँस हँस फ़िदा हम करेंगे संजय कुमार गिरि 5 बिना तेल के दीप जलता नहीं है उजाले बिना काम चलता नहीं है बिना रोजगारी कहाँ घर चलेगा न हो ये अगर पेट पलता नहीं है दिखाते रहे रात दिन झूठे' सपने , कभी बात से हल निकलता नहीं है सुलाता रहा रात भर भूखे' बच्चे , मगर दुख का' सूरज ये' ढलता नहीं है कहे बात संजय सभी के हितों की गलत बात पे वो मचलता नहीं है संजय कुमार गिरि

Tuesday, 3 October 2017

**गीतिका** 
गाया सदा ही' मैंने ,माँ नाम बस तुम्हारा 
देती हो आसरा तुम जब भी तुम्हे पुकारा 

ये जिंदगी समर्पित करता हूँ' आपको मैं 
आशीष मिल रहा है ,मुझको सदा तुम्हारा

कितनी कठिन हो' राहें चलता रहूँ मैं' पथ पे
आया शरण हूँ माँ मैं , दे दो मुझे सहारा

मिलजुल रहें सदा ही ,माँ शारदे के' दर पे
ये जिंदगी नहीं फिर ,मिलती कभी दुबारा

हर शब्द सार्थक हो .माँ से करें ये' विनती
हम लेखनी लिखे जो ,बन जाए ध्रुव. तारा

करता यही है' विनती संजय सदा यहाँ पर
ले लो शरण में' अपनी बन जाऊं मैं दुलारा

संजय कुमार गिरि

विकट परथति में डॉक्टरों पर जानलेवा हमले क्यों   लेखक संजय कुमार गिरि देश में इस विकट समस्या से आज हर नागरिक जूझ रहा है और न चाहते हुए भ...