Sunday 30 September 2018

आज एक गीतिका  साप्ताहिक अकोदिया सम्राट  एवं  दिन प्रति दिन में प्रकाशित हुई हार्दिक आभार सम्पादकीय मंडल का




Thursday 27 September 2018

बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का यह सम्मान मेरे लिए बहुत ही मूल्यवान है क्योकि इसमें स्व:नंदा नूर साहेब का आशीर्वाद है स्व :नूर साहेब अमर रहें ! 

Tuesday 25 September 2018

हरिद्वार में भूपत वाला स्थित विश्वनाथ धाम आश्रम में, दो दिवसीय 22-23 सितम्बर
हिन्दी साहित्य सम्मेलन हुआ l
प्रमुख अतिथियों में महामण्डलेश्वर प्रखर जी महाराज, डा. रीता सिंह, प्रो. बाबूराम आचार्य, डा. यशपाल कपूर रहे, कार्यक्रम का संयोजन संयुक्त रूप से डा. भूपेन्द्र सिंह शून्य, संध्या सिंह, डा. महेश दिवाकर एवं ब्रजेन्द्र हर्ष ने किया l
प्रथम सत्र में हिन्दी के विकास एवं उन्नयन पर विस्तृत चर्चा एवं वक्तव्य का रहा जिसमें डा. यशपाल कपूर, डा. ज्वाला प्रसाद, कौशल सिखौला, डा. रजनी, रमेश रमन, डा.रमेश चक्र, मनोज मानव, अनमोल शुक्ल, महाबीर सिंह, गुरचरन मेहता रजत एवं डां आदर्शिनी श्रीवास्तव, वीर पटेल एवं संजय गिरि ने अपने विचार रखे एवं बहुमूल्य सुझाव दिये l
दूसरा सत्र काव्य गोष्ठी का रहा जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से, आये कवि एवं साहित्यकारों नें
अपनी बेहतरीन प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया l काव्य गोष्ठी का संचालन दिल्ली के प्रसिद्ध कवि निर्देश शर्मा पाबला ने किया और गोष्ठी को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचाया l
अंत में ब्रजेन्द्र हर्ष ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया l

Friday 21 September 2018


सर उड़ाया धड़ उडाना चाहिए
खून का दरिया बहाना चाहिए
आँख दिखलाता है वो जब भी हमें
आंख में सरिया घुसाना चाहिए
रोज ही धमकी दिया करता है वो
धुल उसको अब चटाना चाहिए
गर तिरंगे का करे अपमान अब ?
विश्व से नक्सा मिटाना चाहिए
खून की गर्मी हमारी यह बोलती
सूर्य सा उसको जलाना चाहिए
ओज वाणी में झलके "संजय" तेरी
लहू वतन के काम आना चाहिए
संजय कुमार गिरि

Thursday 20 September 2018

आज कानपुर से प्रकाशित हिंदी समाचार पत्र जन सामना में एक ग़ज़ल प्रकाशित हुई ,हार्दिक आभार सम्पादकीय मंडल का ---

Wednesday 19 September 2018


गीत
आ रही है याद हर पल गाँव की
धूप में जलते वो' नन्हें पाँव की
माँ मुझे तू याद इतनी आ रही
रात भी अब नींद के बिन जा रही
आँख से आंसू निकलते हैं मे'रे
अब मुझे दर्शन मिलेंगे कब तेरे
धूल माथे कब लगालूँ पाँव की
आ रही है याद मुझको गाँव की
याद आता है मुझे बचपन मे'रा
खूब भाता था मुझे आँचल तेरा
दौड़ कर मैं जब लिपट जाता गले
तू छिपाती थी मुझे आँचल तले
सुरमयी सुन्दर सलौनी छाँव की
आ रही है याद मुझको गाँव की
आ रही है याद मुझको गाँव की
धूप में जलते वो'नन्हें पाँव की
संजय कुमार गिरि

Monday 17 September 2018

भगवान विश्वकर्मा जयंती की पूर्व संध्या पर कवि सम्मेलन की खबर 18 तारीख के वीमेन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुई -

Sunday 16 September 2018

15 सितम्बर को अम्बाला से प्रकशित हिंदी समाचार पत्र दिन प्रतिदिन में प्रकाशित हुआ एक गीत ,हार्दिक आभार आदरणीय राज कुमार सहारा जी का !!!

Friday 14 September 2018

जिंदगी तुझसे नहीं कोई गिला है
दर्द भी हमने यहाँ हंसकर सहा है
प्यार में जिनके सदा जीते रहे हम
प्यार में उनके नहीं कोई वफ़ा है
ज़ख्म खाए थे यहाँ पर आज तक जो
प्यार करना क्या यहाँ कोई गुना है
भाव खाता है यहाँ वो आज ऐसे
लग रहा जैसे यहाँ वो ही ख़ुदा है
जब फकीरों ने उठाये हाथ अपने
हाथ से उनके सदा निकली दुआ है
क्या पता ये बात उनको आज संजय
ये ज़हर हमने यहाँ कैसे पिया है
रात भर तडफा पसीना आ गया
गर्मियों का जब महीना आ गया
एक पैसा भी नहीं अब जेब में
दर्द में ज़ख्मों को' सीना आ गया
दर बदर भटकूँ यहाँ में देर तक
दोस्तों के साथ पीना आ गया
याद माँ की जब मुझे आई कभी
पास जाने का करीना आ गया
आज पीछे हैं पड़े मेरे सभी
हाथ में जब से नगीना आ गया
पाँव माँ छु लिए तो ये लगे
घर मेरे मक्का मदीना आ गया
संजय कुमार गिरि
ग़ज़ल
बिटिया को तुम आने दो
खुशियाँ घर में छाने दो
नन्हे नन्हें क़दमों से
धरती स्वर्ग बनाने दो
बेटों की ही चाहत में
दिल को ना बहकाने दो
बिटिया है तो जन्नत है
दिल में रंगत आने दो
बाबुल का घर छोड़ उसे
गुलशन को महकाने दो
साजन के घर जाने पर
दुल्हन बन शरमाने दो
-------संजय कुमार गिरि
नहीं होता कभी लफड़ा हमारा
न करते तुम अगर चर्चा हमारा
लिखा इक शे'र था हमने ख़ुदी से
वो' जांचा और था परखा हमारा
असर होता नहीं अब शाईरी का
रहा जब से नहीं ज़ज्बा हमारा
नज़र में तो थे हम दिलवर सभी के
बदल के रख दिया रुतवा हमारा
नज़र लग जाए ना "संजय" किसी की
महकता ही रहे गुंचा हमारा
संजय कुमार गिरि
आज के वीमेन एक्सप्रेस में प्रकाशित --

हिंदी दिवस की अनंत शुभ कामनाएं 
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चलो आज हिंदी चलन हम मनाएं 
दिलों में बसी जो जलन हम मिटायें 
कलम हाथ में ले लिख दो यहाँ कुछ
सभी के गले लग मिलन हम मनाएं
संजय कुमार गिरि
दिन प्रति दिन में प्रकाशित --

**तीज पर एक गीत**
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आ गया है तीज का त्यौहार सखियाँ झूमती
डाल कर झूला ख़ुशी से आज सब हैं झूलती
आ गया है तीज का त्यौहार सखियाँ झूमती 2
पाँव में महावर लगा के हाथ मेहँदी से रचा
आ गई बेला मिलन की गाल पी के चूमती
डाल कर झूला ख़ुशी से आज सब हैं झूलती
आ गया है तीज का त्यौहार सखियाँ झूमती -2
लाल पीला और नीला वस्त्र पहने हैं सभी
नाचती गाती ख़ुशी से पाँव न ठहरे कभी
हर नज़र हैं आज केवल बस उन्हीं को घूरती
डाल कर झूला ख़ुशी से आज सब हैं झूलती
आ गया है तीज का त्यौहार सखियाँ झूमती -2
चल रही है आज ठंडी और कोमल ये पवन
कर रहीं हों आज जैसे प्रेम से अपना मिलन
प्रेम में होकर मगन वो रीत सारी भूलती
डाल कर झूला ख़ुशी से आज सब हैं झूलती
आ गया है तीज का त्यौहार सखियाँ झूमती-2
संजय कुमार गिरि
                  *छंद*  
भारती के लाडलों ने ,भारती की रक्षा हेतु
दुश्मनों से लड़कर ,जान ये गवाई है ।
आन वान शान हेतु ,तिरंगे के मान हेतु
सीने पर खाके गोली ,वीर गति पाई है
जन गण मन गाके ,रूखा सूखा अन्न खाके 
वीर सपूतों की कहानी बन के छाई है
बहनों की मांग सूनी ,माताओं की गोद सूनी
तब जाके भारत में ,आज़ादी ये आई है
संजय कुमार गिरि
           *गज़ल* 
अब किसी से नहीं गिला अपना
मीत ही जब नहीं रहा अपना
जिस्म से जान ये निकल जाती
सामना मौत से हुआ अपना
आस टूटी नहीं कभी यारो
चल रहा साथ काफ़िला अपना
अब किसी से नहीं रही नफरत
गुलसिता है हरा भरा अपना
राह में वो मिले हमें जब से
प्यार का सिलसिला चला आपना
चल कहीं और घर बना "संजय "
रख किसी से न वास्ता अपना
संजय कुमार गिरि

Saturday 1 September 2018

कभी छल कपट हम नहीं यार करते
कभी पीठ पीछे न हम वार करते
लगाया न होता गर' इलज़ाम सर पर
कभी हम न तुमसे यूँ' तकरार करते
हमें माँ पिता ने दिखाई जो' दुनिया
वही स्वप्न हम आज साकार करते
दिलों में अगर देश भक्ति न होती
अमन चैन दिल से न स्वीकार करते
न होता कभी हाल ऐसा वतन का
गरीबों को' थोडा जो' उद्गार करते
चलो आज "संजय" बता दो हक़ीकत
कभी हम किसी का न मनुहार करते
संजय कुमार गिरि

विकट परथति में डॉक्टरों पर जानलेवा हमले क्यों   लेखक संजय कुमार गिरि देश में इस विकट समस्या से आज हर नागरिक जूझ रहा है और न चाहते हुए भ...