Friday 24 May 2019

लघु कथा -4
लघु कथा बहादुर कुत्ता
गली का हर कुत्ता मुझे पहचानता है ,मेरे गली में कदम रखते ही सभी कुत्ते एक सुर में गाने लगतें हैं और मेरे पास आ मुझे घेरकर गोल- गोल चक्कर काटने लग जाते हैं । आज उन कुत्तो में से एक कुत्ता नदारत था। मुझे बेचैनी सी हो रही थी उसे लेकर । घर पहुँचकर हाथ-मुँह धोकर मैं अपने कमरे में आया और न्यूज़ देखने लगा।
न्यूज़ में देखा की हमारी ही गली केें एक घर में कुछ बदमाश लूट की वारदात करने आये थे पर वे अपने मनसूबे में सफल न हो सके ओर उन्हें भागना पड़ा। इस सब का कारण वह कुत्ता ही था .उसने ठीक समय पर भौंकना शुरू कर दिया था जिसके कारण उन बदमाशों को भागना पड़ा। लेकिन जाते हुए बदमाशों ने उस कुत्ते को अपनी खीझ में गोली मार दी थी।
आज उस कुत्ते की वजह से एक परिवार लूटने और उजड़ने से बच गया था। बाकी रह गई थी तो कुत्ते की कुर्बानी । पर यहाँ तो लोग शहीदों की कुर्बानी नहीं समझते कुत्ते की क्या बिसात ।
अगली सुबह लोग चोरों की चर्चा खूब चटखारे लेकर कर रहे थे । कुत्ता उनके लिए गौण था । उनकी नज़रों में तो वह एक कुत्ता ही था भला उसका क्या मोल।
बड़ी मस्कत से उन बदमाशों में एक को पकड़ लिया था पुलिस ने । किन्तु ,बहादुर कुत्ते का न कोई केस लड़ेगा न उसे न्याय मिलेगा ....हाँ, यहाँ बहादुर कुत्तों के लिए कभी कुछ नहीं होता ।
संजय कुमार गिरि
लघु कथा -3
* अनाथ *
मैं किसी काम से बाजार जा रहा था के रास्ते में मैंने देखा कुछ युवक एक युवती को छेड़ रहे थे यह मुझसे देखा न गया और मैं उस युवती की मद्दत करने आगे बढ़ा और उन बदमाशों को डांटने लगा ,उनके साथ बहस ज्यादा बढ़ गई और उन बदमाशो में से एक ने अचानक ही मुझे चाकू मार दिया और सभी वहां से भाग लिए । मैं अचेआवस्था में पड़ा रहा और लोग आ -जा रहे थे पर किसी को भी इतना वक्त नहीं की मुझे देख सके और मुझे किसी नजदीकी अस्पताल पहुँचा सके ।इतने में ही मैंने देखा कि एक गरीब व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग 55 - 60 के आस -पास रही होगी ,मुझे अपने कंधो पे ड़ाल अस्पताल कि ऒर चल पड़ा ।
.अस्पताल पहुँच कर उसने मुझे आपात -कालीन वार्ड में एडमिट करा दिया और मेरी देखभाल कि खातिर रात भर वहीं रुका ।मेरी देखभाल करने में उस ने कोई कसर नहीं छोड़ी .सुबह होते ही वह मेरे लिए चाय और बिस्कुट ले आया और मेरी और बढ़ाते हुए उसने कहा लो बेटा नास्ता कर लो ।उसके मुँह से अपने को बेटा शब्द सुनते ही मेरी आँखों से आँसू बह निकले ,आज तक मुझ अनाथ को किसी ने भी बेटा कह कर नहीं बुलाया था ,मेरे बहते हुए आँसूओं को देख कर वह बूढ़ा व्यक्ति बोला,बेटा रोते क्यों हो क्या दर्द ज्यादा हो रहा है. रुको मै डॉक्टर को बुला लाता हूँ ।मैंने उन्हें रोकते हुए कहा नहीं बाबा ये दर्द मेरे ज़ख्मों का नहीं बल्कि ज़माने द्वारा दिए तानो व् गलियों का है ।.आज तक किसी ने भी मुझे बेटा कह कर नहीं पुकारा ,था सभी ने मुझे कभी छोटू ,छोकरे तो कभी लोंडे या हरामी के नाम से पुकारा था , आप ही वो पहले शक्स हैं जिसने मुझे बेटा कहा है ।.मेरी बात सुनकर वह बूढ़ा व्यक्ति भी रो पढ़ा और मुझे अपने गले लगा लिया और बोला बेटा मैं भी तुम्हारी ही तरह अनाथ हूँ मेरा भी इस दुनिया में कोई नहीं है ।
हम दोनों ने अब एक दुसरे को सम्भाला और हॉस्पिटल से छुट्टी ले कर अपने गन्तव्य कि ओर चल पड़े ,एक दुसरे कि बांह पकडे ,अब हम अनाथ नहीं थे ।
*संजय कुमार गिरि
9871021856

Wednesday 22 May 2019

लघु कथा -2
अनमोल गिफ्ट
==========
वह मेरे पसीने में भीगे कपड़ों को देखकर ऐसे नाक भों सिकोड़ रहा था जैसे कि मैं किसी दूसरे ग्रह का प्राणी हूँ, शायद उसे मेरे पसीने की दुर्गंध आ रही थी । किन्तु मैं क्या करता दिनभर धूप में जी तोड़ मेहनत करता रहा था ,कभी इधर तो कभी उधर सामान लेकर जाना पड़ रहा था। उस पर साहेब का गुस्सा ,जैसे तैसे मैं अपना काम निपटा कर ऑफिस से जल्दी घर निकलना चाहता था । सुबह ही पत्नी से वादा जो किया था कि 20 वीं सालगिरह है, आज किसी रेस्टोरेंट चलेंगे डिनर करने ।
पर काम की वजह से आज भी भाग दौड़ रोज की तरह बनी रही । 7 बजे फ्री होते ही मेट्रो पकड़ी और घर को चल दिया था ।मेरे बगल में ही एक सूट बूट पहने व्यक्ति मुझे पसीने में देख अजीब-सी नजरों से घूरे जा रहा था ।मैं भी अपनी जगह-जगह से घिस चुकी कमीज को उसकी नजरों से बचाता संकोच वश अपने को सिकोड़े गेट के शीशे के पास खड़ा शर्मिंदगी महसूस कर रहा था ।
कश्मेरी गेट मेट्रो स्टेशन से बाहर को निकला तो ताजी हवा में थोड़ा सुकून मिला । देर होने के कारण मार्केट बंद हो गई थी और मैं पत्नी के लिए कोई गिफ्ट न ले सका ।अनमने मन से जल्दी में ऑटो पकड़ घर की ओर चल दिया । घर पहुँचते पहुँचते रात्रि के 10 बज चुके थे और पत्नी दरवाजे पर खड़ी बेसब्री से मेरी राह ताक रही थी ।
"सॉरी यार , मैं काम कि वजह से तुम्हारे लिए कोई गिफ्ट नहीं ला सका ।" मैं बहुत ही अजीब महसूस कर रहा था ।
उसने जैसे कुछ सुना ही नहीं था । वह मुजसे लिपट गई ।
"ये क्या जरूरी है कि हर बार तुम ही मुझे गिफ्ट दो ।" मुझे एक पैकेट पकड़ाते हुए मैरिज एनिवर्सरी की बधाई दी ।मैंने पैकेट खोलकर देखा तो दंग रह गया उसमें एक पिंक शर्ट और ब्लैक पेंट थे।
"सही कहती हो ...तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है ।"
"सो तो है ...तुम्हें जो पसंद किया है ।" वह मुस्कुराते हुए बोली । पत्नी को मालों था कि पसीने की खुशबू क्या होती है ।
संजय कुमार गिरि

Monday 20 May 2019

बोले ये हनुमान मंत्र, पाएं आगे बढऩे का जबर्दस्त हौंसला
*******************************************************
मंगलवार को हनुमान मंदिर में ये आसान हनुमान मंत्र बोलने से आगे बढऩे और तरक्की करने का जबर्दस्त हौंसला मिलता..
बोले ये हनुमान मंत्र, पाएं आगे बढऩे का जबर्दस्त हौंसला
धन, स्वास्थ्य, सुविधा, जरिया होने के साथ ही कामयाबी या विपरीत हालात से बाहर आने के लिए एक ओर बात मायने रखती है। वह है - हौंसला, उत्साह या उमंग। किंतु उतार-चढ़ाव भी जीवन का हिस्सा है। इसलिए अचानक मिले दु:ख या जी-तोड़ मेहनत के बाद भी मिली नाकामयाबी इंसान के हौंसलों को कमजोर करती है। ऐसी हालात में हर कोई नई शुरुआत के लिए कुछ ऐसे उपाय की कामना करता है, जो फिर से नई ऊर्जा से भर दे।
शास्त्रों में ऐसी ही मुश्किल हालातों से निपटने के लिए देव उपासना का महत्व बताया गया है। इसी कड़ी में उत्साह, ऊर्जा और उमंग पाने और मुश्किलों से बाहर आने के लिए श्री हनुमान की भक्ति प्रभावी मानी जाती है।
हनुमान की प्रसन्नता के लिए यहां श्री हनुमान स्मरण के ऐसे ही उपायों में छोटे, बोलने में सरल ग्यारह श्री हनुमान मंत्रों को यहां बताया जा रहा है। जिनका मंगलवार, शनिवार या हर रोज ध्यान कष्टों को दूर कर निरोग और ऊर्जावान बनाए रखने वाला माना गया है। जानिए, मंत्र व पूजा उपाय -
- श्री हनुमान की गंध, फूल, सिंदूर, नारियल, गुड़-चने, धूप, दीप से पूजा कर इन मंत्रों का यथाशक्ति जप करें।
ॐ हनुमते नमः
ॐ वायु पुत्राय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ अजराय नमः
ॐ अमृत्यवे नमः
ॐ वीरवीराय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ निधिपतये नमः
ॐ वरदाय नमः
ॐ निरामयाय नमः
ॐ आरोग्यकर्त्रे नमः

लघु कथा -1
अपशगुन
आज सुबह से ही मेरी बाईं आँख लगातार फड़फड़ा रही थी। मेरे मन में किसी अपशगुन के घटित होने की आशंका बनी हुई थी। चुपचाप खाना खाकर निकाल लिया था । आज पत्नी से ज्यादा नमक की शिकायत भी नहीं की थी। 
ऑफ़िस पहुँच कर मैं अपने कम्यूटर को ऑन किया। काम बहुत था किन्तु बार-बार मेरे मन में अपशगुन की आशंका घूमे जा रही थी ।
“गुड मॉर्निंग सर।“ पेंट्री बॉय ने चाय टेबल पर रखते हुए कहा। मैं भी जैसे-तैसे अपना मन मारकर अपने काम में लग गया। अचानक फोन की घंटी बजी। फोन उठाने की हड़बड़ी में चाय न जाने कैसे टेबल पर गिर गई ।
फोन परसंदीप ने भी एक दु:खद सूचना दी कि मेरे ससुर जी की अचानक से तबियत ख़राब हो गई है और वे हॉस्पिटल में एडमिट हैं । जिसका डर था वही हुआ। हार्ट के मरीज थे वे और डॉ ने तुरंत ऑपरेशन के लिए बोला था । यह खबर सुनकर मेरे हाथ पैर काँप गए, मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करूँ ? मैं अभी कुछ सोच ही रहा था कि तभी ऑफिस बॉय मेरे नज़दीक आया और बोला, “बॉस बुला रहें हैं।“
मैं अपने को किसी तरह संभालता इस नई मुसीबत के लिए बॉस के केबिन में गया । जैसे ही बॉस ने मुझे देखा तो तुरंत मेरा स्वागत करने स्वयं मेरे नजदीक आ गए। मेरे कंधे पर शाबाशी देते हुए मेरी पीठ थपथपाई और बोले,
“तुमने बहुत अच्छा कार्य किया है। तुम्हारे कार्य से हम बेहद खुश हैं और अब तुम्हारा प्रमोशन कर रहे हैं ।“
वहीं पास में मेरे मैनेजर भी खड़े थे और और उन्होंने मुझे बधाई देते हुए कहा, “संजय! हमें तुम पर बहुत नाज़ है, अगले माह से तुम्हारी सैलरी अब बढ़ कर आएगी !”
जब मैं बोस के केविन से बाहर निकला तो मेरे अंदर का अपशगुन का डर गायब था और चेहरे पर मुस्कान थी।
मैंने बैंक से पैसे निकाले और अपशकुन को शकुन में बदलने के लिए अस्पताल की ओर चल दिया ।
संजय कुमार गिरि
किसी भी रचना में भाव पक्ष कविता की आत्मा तो व्याकरण उसकी हड्डियां होती है और शिल्प इसका सौंदर्य होता है I
संजय कुमार गिरि

Friday 3 May 2019


हमारी सालगिरह पर आप सभी मित्रों की अनेकों बधाई एवं शुभ कामनाएं सन्देश पाकर हमारा ह्रदय मन आनंद से अभिभूत हो गया ,मित्रो आप सबके सुन्दर सुन्दर लाइक और कमेंट्स मिलें उसके लिये सहृदय धन्यवाद।
हर्षित मन ये हो गया, बदल गया परिवेश !
सालगिरह पर आपके ,पाकर शुभ सन्देश !!
संजय कुमार गिरि























कभी मुझसे न अपने राज़ यारा तू छिपाया कर
जो माना मीत अपना तो मुझे सब कुछ बताया कर
यकीं है गर तुझे मुझ पर नहीं दूँगा तुझे धोखा
ज़माने की कही बातों में ऐसे तो न आया कर
तुझे हक़ है दिया मैंने किया कर हर शिकायत तू
करूँ गर कोई गलती मैं मुझे खुल के बताया कर
अगर है दोस्ती पक्की तो झगड़ा भी जरूरी है
कभी मैं मान जाऊंगा कभी तुझको मना लूंगा
तेरे मन से जुड़ा हूँ मैं मेरे मन से जुड़ा है तू
अगर माने हथेली पर न सरसों को उगाया कर
सहर या शाम बातें मैं करूँ घर में सदा तेरी
कभी मैं रूठ जाऊँ तो मुझे तू भी मनाया कर
खफ़ा होगा जो संजय से कहाँ तू चैन पायेगा
अँधेरा कर दूँ मैं गर एक दीपक तू जलाया कर
संजय कुमार गिरि

विकट परथति में डॉक्टरों पर जानलेवा हमले क्यों   लेखक संजय कुमार गिरि देश में इस विकट समस्या से आज हर नागरिक जूझ रहा है और न चाहते हुए भ...